कुछ दिन हुए एक समाचारपत्र
में पंजाब के पूर्व डी.जी.पी .रह चुके श्रीमान् जूलियो रिबैरो जी का एक लेख पढ़ने
में आया | इस लेख में उन्होंने संघ एवं भाजपा के विरुद्ध काफी रोष प्रकट किया है |
इस लेख में उन्होंने जो विचार लिखें हैं उनमें परस्पर काफी विरोधाभास देखने को
मिला और कई बातें तो अपने आप में ही कई प्रश्न खड़े करती हैं | पहली बात तो यह समझ
में नहीं आयी कि वह अपने आपके भारतीय होने पर गर्व का प्रदर्शन कर रहे हैं या फिर
ईसाई होने के नाते अपने द्वारा भारत के प्रति की गयी सेवाओं के लिए एहसान जतलाने
के बहाने ईसाइयत का प्रचार कर रहे हैं | एक तरफ वह संघ के स्वयंसेवकों के द्वारा
किये गए मान-सम्मान का उल्लेख कर रहे हैं तो दूसरी ओर संघ के कार्यकर्त्ताओं की
तुलना बिल में घुसे जीवों से कर रहे हैं जो कि मौका पाकर बिलों से बाहर आकर उनकी
निंदा कर रहे हैं | वह संघ प्रमुख पर हिन्दू राष्ट्रवादी या साम्प्रदायिक होने का
आक्षेप करते हैं तो फिर स्वयं ईसाइयत का ढोल क्यों पीट रहे हैं ? ईसाईयों द्वारा
किये जा रहे तथाकथित महान कार्यों का बखान क्यों कर रहे हैं ? मदर टेरेसा के बारे
में दिए गए संघ प्रमुख के बयान से इतने आहत हैं कि वह संघ एवं भाजपा को उग्रपंथी
तक कहते हुआ भी हिचकिचाए नहीं | ईसाई धर्म की असलियत क्या है यह छिपी नहीं है
किन्तु मीडिया द्वारा ऐसी बातों को छिपाने और हिंदुत्व समर्थक बातों को
मिर्च-मसाला लगाकर साम्प्रदायिक बताकर उछालने के कारण बहुत से लोग ईसाई धर्म की
असलियत के बारे में शायद नहीं जानते | संघ प्रमुख के मदर टेरेसा पर दिए गए बयान कि
मदर टेरेसा द्वारा सेवा की आड़ में धर्मान्तरण करना सेवा के मूल उद्देश्य से भटकना
है से ईसाई समाज में तो हड़कम्प मचा ही किन्तु निजी स्वार्थ के लिए सभी राजनैतिक
दलों ने भी संघ प्रमुख के बयान पर माफ़ी मांगने की वकालत कर डाली | विडम्बना तो यह
है कि ईसाईयों को पक्षपात रहित हो सेवा करने का सन्देश देने के स्थान पर मीडिया
संघ प्रमुख की आलोचना को अधिक प्रचारित एवं प्रसारित किया है | जहाँ तक मदर टेरेसा
की बात है तो उन्होंने स्वयं ही कहा है कि वह सेवा इसलिए करती हैं ताकि वह अधिक से
अधिक लोगों को जीसस के करीब ले जा सकें | इसका अर्थ यह हुआ कि जो लोग ईसा के नज़दीक
नहीं हैं उनकी सेवा नहीं करनी | मदर
टेरेसा पर तो हमेशा से ही वेटिकेन की और मिशनरी ऑफ़ चेरिटी की मदद से धर्म परिवर्तन
का आरोप लगता ही रहा है | उनकी दया की
मूर्ती ,मानवता की सेविका ,बेसहारा और गरीबों की मसीहा आदि वाली छवि को ग्रहण
लगाने वाले आरोप अधिकतर पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों ने ही लगाये हैं ना कि
हिन्दू संगठनों ने | अपने देश के गरीब ईसाईयों की सेवा करने के स्थान पर मदर
टेरेसा को भारत के गरीब गैर ईसाईयों के उत्थान में रूचि क्या इशारा करती है ? वह
दूसरे के लिए दवाई से अधिक प्रार्थना पर विश्वास करती थी जबकि अपना ईलाज कोलकाता
के महंगे से महंगे अस्पतालों में करवाती थी | संत वही है जो पक्षपात रहित हो एवं
जिसका उद्देश्य मानवता की भलाई हो | ईसाई मिशनरीओं का पक्षपात तो इसी बात से
स्पष्ट हो जाता है कि वे केवल उन्हीं गरीबों की सेवा करना चाहती हैं जो उनके मत को
स्वीकार करते हैं | ईसाई मिशनरियां धन,शिक्षा और सेवा का झूठा सपना दिखाकर हिन्दू नागरिकों अधिकतर
दलितों एवं आदिवासिओं को ईसाई बनाने पर लगी हुई हैं | पिछड़े वर्गों को डरा-धमका
कर,अत्याचारों एवं लालच के द्वारा धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर किया जाता है | न
मानने पर जान से मारने की धमकी और फिर भी न मानने पर जान से ही मार दिया जाता है |
समय समय पर अनेक विचारकों एवं चिंतकों ने जबरन धरम परिवर्तन का विरोध किया है |
गाँधी जी ने कहा है कि मिशनरियों के प्रभाव में हिन्दू परिवार की
भाषा,वेश-भूषा,रीति-रिवाज़ का विघटन हुआ है | यदि मुझे कानून बनाने का अधिकार होता
तो मैं धर्म परिवर्तन बंद करवा देता | उन्होंने ईसाई मिशनरियों से कहा कि यदि वे पूरी
तरह से मानवीय कर्मों तथा गरीबों की सेवा करने के बजाये डाक्टरी सहायता,शिक्षा आदि
के द्वारा धर्म परिवर्तन करेंगे तो निश्चित ही मैं उन्हें चले जाने के लिए कहूँगा
| इसी सन्दर्भ में मैं अपना एक अनुभव साँझा करना चाहूंगी | मेरा बेटा मिशनरीज़ ऑफ़
चैरिटी द्वारा चलाये जा रहे एक कान्वेंट स्कूल में पढ़ा है | एक बार हम लोग उसके
स्कूल के आगे से जा रहे थे तो हमने स्कूल में पढ़ाने वाली एक नन को देखा जोकि शहर
जाने के लिए शायद लिफ्ट की प्रतीक्षा कर रही थी | हमने उन्हें लिफ्ट दी तो मार्ग
में उन्होंने हमें बताया कि वह एक बस्ती में सेवा रूप में पढ़ाने जाती हैं और
आवश्यकता अनुसार दवाइयों आदि से सेवा भी करती हैं | उस समय मैं उनके इस सेवा की आड़
में किये जाने वाले धर्म परिवर्तन से अनभिज्ञ थी तो उनकी इस बात से बहुत प्रभावित
हुई | घर आकर बेटे से जब इस विषय में बात की और उसने जो कुछ बताया उसे सुनकर मैं
आवाक् रह गयी | उसने बताया कि यह लोग उस बस्ती में मुफ्त पढ़ाने और सेवा के बहाने
गरीब एवं भोले-भाले लोगों को लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन केर उन्हें ईसाई बना
देते हैं | उसने बताया कि एक वाहन चालक जो कि स्कूल में ही कार्यरत था को कुछ
रूपयों और उसके बच्चों की मुफ्त शिक्षा के लालच में परिवार सहित धर्मांतरण करवा
ईसाई बना भी चुके हैं | एक और घटना के अनुसार हमारे करीबी मित्र का बेटा अपने
अंकों के अनुसार योग्य होने पर भी सी.ऍम.सी.लुधिआना में मेडिकल में दाखिला नहीं पा
सका क्योंकि उसने कॉलेज वालों की ईसाई धर्म की शर्त को मानने से इन्कार कर दिया था
| उसने धर्म परिवर्तन करने से शहर परिवर्तन करना बेहतर समझा और केरल जा कर अपनी
शिक्षा पूर्ण की | यदि हम इतिहास देखें तो ऐसी घटनाओं से भरा मिलेगा | रिबैरो साहब
जिस धर्म का गुणगान करते नहीं अघाते ऐसी घटनाओं के विषय में क्या तर्क देंगे ?
उन्होंने संघ या भाजपा पर हिन्दू राष्ट्रवादी होने का आरोप तो मढ़ दिया किन्तु
उन्हें यह ज्ञात रहना चाहिए कि हिन्दू धर्म इस भारत भूमि का मूल धर्म है | ईसाई
एवं मुस्लिम धर्म तो बाहर से आये धर्म हैं | यह हिन्दू धर्म ही है जो सर्वधर्म
समभाव की भावना रखता है | हिन्दू जबरन धरम परिवर्तन नहीं करवाते | घर वापसी
कार्यक्रम जिस पर यह लोग ऊँगली उठाते हैं वह तो उन लोगों की स्वेच्छा से अपने मूल
धर्म में लौटने की प्रक्रिया है जिनका पूर्वकाल में जबरन धर्म परिवर्तन हो चुका है
, नाकि ईसाई धर्म की तरह सेवा,शिक्षा या परोपकार के नाम पर असहाए लोगों को
डरा-धमका कर किया जाने वाला कार्य है | फिर जब मोदी सरकार ने एंटी कन्वर्जन बिल
पास करने कि हिमायत की तो ईसाइयों एवम् विपक्ष ने इसके विरोध में इतना हंगामा
क्यों किया | रिबैरो साहब अपने डीएनए को संघ प्रमुख के डीएनए से अलग नहीं मानते तो
फिर ईसाईयों के द्वारा विभिन्न विभागों में दी जाने सेवा का ढिंढोरा क्यों पीट रहे
हैं? यदि वह अपने आपको भारतीय मानते हैं तो क्या भारतीय होने के नाते इस भारत भूमि
की उनका कोई कर्तव्य नहीं है ? या फिर छद्म रूप से अपने को ईसाई कह कर संघ और
भाजपा को हिन्दू राष्ट्रवादी कह कर साथ ही मुस्लिम धर्म का नाम लेकर कहीं न कहीं
साम्प्रदायिकता फ़ैलाने का प्रयास तो नहीं कर रहे | ईसाई होते हुए भी भारत की इतनी
सेवा की यह जतला कर लोगों की सहानुभूति बटोरने का प्रयास तो नहीं | कुछ भी हो
रिबैरो साहब सहित अन्य जितने भी इस मानसिकता के लोग हैं उन्हें यह समझना होगा कि
धर्म एक बहुत ही निजी विषय है | प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म प्रिय होता है |
यदि वह अपने आपको भारतीय मानते हैं तो उन्हें इस भारत भूमि की सेवा के बदले “स्पेशल
ट्रीटमेंट” की अपेक्षा छोड़ मिथ्या आरोप-प्रत्यारोपों से बचते हुए सच्चाई को
स्वीकारना चाहिए | यहाँ मीडिया का भी दायित्व बनता है कि वह अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी
का निर्वहन करते हुए जो सच्चाई है उसे ही प्रकाशित करे या दिखाए नाकि केवल घटिया
लोकप्रियता प्राप्त करने के उद्देश्य से
मिथ्या प्रचार करे |
मोनिका गुप्ता ,
मोगा |
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