Friday, January 23, 2015

घर वापसी युक्ति पूर्ण औचित्य

सर्व साधारण जनता इसको समझती है कि मुसलमान मत से हिन्दू बनाने के क्रम को ''घर वापसी का नाम दिया गया है। आठ सौ साल के मुस्लिम राज्य और लगभग दो सौ साल के अंग्रेजी राज्य में हिन्दुओं को क्रमश: इस्लामियत और ईसाईयत में मतांरित करने के पीछे भावना यही थी कि जब संख्या अधिक हो ताकि राज्य को सहायता प्राप्त हो।
जब वर्ष 1191 में मुस्लिम आक्रमणकारी शहम्बुद्दीन मुहम्मद गौरी ने हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान को पराजित करके भारत में मुस्लिम राज्य स्थापित किया था तो भारत में तो मुस्लिम जनसंख्या नगण्य के बराबर थी या यूँ कहिए कि भारत में मुस्लिम जन संख्या नहीं थी। बल के आधार पर उन्होंने भारत पर राज्य किया।
भारत में इतनी बड़ी मुस्लिम जनसंख्या अरब, अफगानिस्तान, ईरान आदि मुस्लिम देशों से नहीं आई थी। भारत के हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन किया गया था। इसका अर्थ यह नहीं कि भारत में बसे हिन्दुओं ने अपनी इच्छा से मुस्लिम मत को श्रेष्ठ समझकर अपना धर्म बदला था बल्कि भय और लालच से हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया था। इस प्रकार के अवैद्यरूप से धर्म परिवर्तित लोगों को पुन: अपने धर्म में प्रवेश कराना यथार्थ ''घर वापसी'' है।
जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के अनेकों उदाहरण इतिहास के पन्नों पर हैं। इस प्रकार की घटनाएं इतिहास में कुछ महापुरुषों की हैं। प्रश्न यह कि जबरदस्ती और राज्य द्वारा भय उत्पन्न करके इस प्रकार की घटनाएं हुईं और जगह जगह इस प्रकार से होता था। अपनी जान बचाने और अपने परिवार को भयानक दौर से बचाने के लिए मुसमलान होना स्वीकार करना पड़ता था। सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर को डराया धमकाया गया कि तुम मुसलमान हो जाओ अन्यथा आप को अत्यंत कष्ट दिए जाएंगे। मुसलमान शासकों की योजना थी कि गुरु तेग बहादुर इस्लाम स्वीकार कर लेते हैं तो अन्य लोग भी मुसलमान बन जाएंगे। दहली का चांदनी चौक साक्षी है कि गुरु तेग बहादुर जी को किस प्रकार शहीद किया गया।
उनके बलिदान से पहले भाई मतिदास को लोहे की चरखड़ी पर चढ़ा कर उनका एक एक अंग छलनी किया गया। यह सब गुरु तेग बहादुर जी के सामने किया गया ताकि उनके मन में भयानक डर उत्पन्न किया जाए। गुरु जी कैद थे और सुलाखों से भयानक दृश्य देख रहे थे। चरखड़ी क्या है ? दो बड़े बड़े लोहे के चक्कर घूमते हैं और परस्पर टकराते हैं। इन्हीं चक्कड़ों के बीच तीखी लोहे की सुलाखे होती हैं। गुरु तेग बहादुर के साथी भाई मती दास जी ने जब मुसलमान होना स्वीकार न किाय तो चरखड़ी के चक्करों के बीच में तीखी सुलाखों में घुमाया गया जिससे तीखी सुलाखें शरीर में धंस कर खून के फुहारे छूटते थे। परन्तु भाई मतीदास ने मुसलमान होनी स्वीकार न किया। गुरु तेग बहादुर जी का यह दृश्य दिखाया जा रहा ता और कहा जा रहा था कि यदि तुम मुसलमान न बने तो तुम्हारी भी ऐसी दुर्दशा की जाएगी और भी भयानक घटनाएं उनके सामने की गईं ताकि गुरु जी डरकर मुसलमान बन जाएं। श्री गुरु जी के सामने भाई मती दास के अतिरिक्त गुरु जी के भक्त भाई सती दास और भाई दयाला को भी मौते के घाट उतारा गया ताकि भयभीत हो कर गुरु तेग बहादुर जी मुसलमान बन जाएं। धर्म प्रेमी गुरु तेग बहादुर जी ने मुसलमान बनना स्वीकार न किया तो सबके सामने उनका सिर काट दिया गया और मुसलमान सरकार ने कहा कि इनका मृतक शरीर यही रहेगा ताकि लोग इनकी दुर्दशा देखें। सरकार के सजग पहरे में किस प्रकार उनके हिन्दुओं ने गुप्त रूप से शरीर को उठाकर गुप्त रूप से सम्मान पूर्वक अंतिम संस्कार किया - यह इतिहास की वार्ता है। कटे हुए सिर को जीवन सिंह वीर पुरुष ने छुप छुप कर देहली से आनंदपुर साहिब लाया जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया।
इसी प्रकार वीर हकीकत राए किशोर अवस्था के बालक ने मुसलमान होना स्वीकार न किया तो जनता के सामने उसका शीश काट दिया गया। गुरु गोविंद सिंह के नन्हें बच्चों ने जब मुसलमान बनने से इंकार कर दिया तो उन्हें जीवित दीवार में चुनवा दिया गया। छोटे छोटे बच्चों ने मुसलमान बनने की बजाए बलिदान होना उचित समझा। सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव को जितने कष्ट देकर शहीद किया गया उसको लिखते हुए कलम कांपती है। उनका एक ही दोष था कि मुसलमान बनने को तैयार नहीं थे। ऊपरलिखित घटनाओं का निकर्ष यही है कि भारत में हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने की प्रक्रिया विद्यमान थी। ऊपर की कुछ घटनाएं लोगों के सामने आई और इतिहास का भाग बन गई परन्तु ऐसी अनेकों घटनाएं होती रही जो लोगों के सामने न आई और मुसलमान बनाने का क्रम चलता रहा। मुल्लाओं, शेखों, हाजियों आदि द्वारा निश्चित कार्यकरम चलता था कि अमुक गांव बस्ती के हिन्दुओं को मुसलमान बनाओ या किसी प्रतिष्ठित हिन्दू को मुसलमान बनाओ ताकि उन्हें देखकर अन्य बहुत से लोग मुसलमान बन जाएंगे।
इतिहास पर दृष्टिपात करें तो भारत के सुदूर दक्षिण में केरला में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। यह कैसे ? प्रथम विश्व युद्ध वर्ष 1918 में समाप्त हुआ। इसमें ब्रिटिश आदि मित्र देशों की विजय हुई। जर्मन आदि देशों की पराजय हुई। टर्की उस युद्ध में जर्मन देश के साथ था। टर्की उस समय दुनिया के मुस्लिम देशों का खलीफा था।
यह मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा धार्मिक पद था। अंग्रेजों ने आधिकारिक कानूनी घोषणा के द्वारा टर्की का खलाफत पद समाप्त कर दिया था। खलाफत के विरुद्ध इस घोषणा से दुनिया के मुसलमानों के मन में रोष उत्पन्न हुआ। भारत के मुसलमानों ने खलाफत आंदोलन आरम्भ कर दिया। साधारणतया भारत में मुस्लिम आंदोलन किसी प्रकार का हो उसका गुस्सा हिन्दुओं के विरुद्ध हो जाता है। खलाफत आंदोलन में केरला में मोपला मुसलमानों ने हिन्दुओं के विरुद्ध लड़ाई झगड़े आरम्भ कर दिए और वहां हिन्दू जनसंख्या को जबरदस्ती मुसलमान बनाया। हिन्दू हृदय सम्राट वीर सावरकर ने हिन्दू हित के लिए आवाज उठाई परन्तु कांग्रेस खलाफत आंदोलन की समर्थक बनी हुई थी। सावरकर जी ने अपने उपन्यास ''मोपला'' में इस का विस्तीर्ण वर्णन किया है। सारे भारत को एक ओर छोड़ कर सुदूर दक्षिण भाग में समुद्र के किनारे बसा केरला इसाईकरण मुस्लिम बहुल प्रांत बन गया जो विस्मय की बात है।
''घर वापसी'' के संबंध में मुसलमानों को समझना कि तुम्हारे बाप-दादा आदि पूर्व वंशजों को जबरदस्ती मुसलमान बाया गया। अत: प्रतिकार स्वरूप हिन्दू धर्म को अपनाना श्रेयष्क है। कहीं भी भारत में मुसलमानों को समझाना कि इतिहास में जबरदस्ती मुसलमान बनाने के प्रचुर उदाहरण हैं। मुसलमान से हिन्दू बनना अपने पुराने घर में आने के सामान है। युक्तियों द्वारा सिद्ध है कि घर वापसी पूर्ण औचित्य पर आधारित है।
प्यारा लाल बेरी
सम्पादक ''सेवा संस्कार'' पत्रिका

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