Saturday, January 24, 2015

वसंत पंचमी सरस्वती पूजन,ज्ञान का पर्व-- डा. शशी कान्ता


श्रीमद्भगवगीता में श्री कृष्ण ने दसवें अध्याय के 35वें श्लोक में बसंत ऋतु को कहा है कि वसंत ऋतु मैं ही हूँ। वसंत पंचमी प्रसिद्ध भारतीय त्यौहार है। बसंत पंचमी शुक्ल पक्ष के पाँचवें दिन अथार्त् अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार जनवरी और हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है।

बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है क्योंकि यह प्रकृति के लिए सबसे श्रेष्ठ ऋतु है। इस समय पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्व-जल, वायु धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। सबको नवप्राण व उत्साह मिलता है। पुष्प खिल उठते है। आकाश स्वच्छ, वायु सुहावनी, सूर्य रुचिकर, पानी अमृत के समान सुखदाता हो जाता है। धरती उसका तो मानो सौदर्य का दर्शन कराने वाली दिखती है। सरसो के पीले फूलों से ढकी धरती लगता है पीले साड़ी पहनी हो। ठंड से ठिठुर पक्षी अब उडऩे, चह चहाते हैं, तो किसान की लहलहाती जो की बालीया, सरसों के फूलों को देखकर नहीं थकते। निर्धन ठंडी की प्रताडऩा से मुक्त होकर सुख की अनुभूति करने लगते है। धरती का पुनर्जन्म हो जाता है। बसंत प्रकृति का सौन्दर्य लौटा देता है।
पौराणिक इतिहास में विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजा युक्त दर्शाया गया है। सपूर्ण संस्कृति की देवी के रूप में दूध के समान श्वेत रूप वाली अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। वाल्मिकी रामायण के उत्तराखंड में सरस्वती माता ने आपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया था, यह कथा का मनोरम वर्णन है। कहते है देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में धीर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए दो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती जी का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुई। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा-'स्वप्न वर्षा व्यनेकानि'। देव देव ममप्सिनम' यानी मैं कई वर्षा तक सोता रहूँ यही मेरी इच्छा है। ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि है। ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी है। गुण शालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की है। अत: इसे वागीश्वरी जयंती व श्री पंचमी नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है।
कहते है जिसकी जिभा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं। बसंत पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को अर्पित है। इस दिन स्कूल, कालेजों में सरस्वती माता की पूजा होती है। इसको ज्ञान का त्यौहार के रूप में शिक्षण संस्थानों में मनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है।
ओ माँ सरस्वती, मेरे मस्तिक से अज्ञान को हटा दो और मुझे शाश्वत ज्ञान का आर्शिवाद दो।
बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यत: विद्या शुरू करने, नवीन विद्या प्राप्त करने और गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना है। इसके पीछे कई कारण है। यह पर्व अधिकतर माघ-मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है क्योंकि इस माह में पवित्र तीर्था में स्नान करने का विशेष महत्व है। माघ मास में सूर्यदेव भी उत्तरायण में होते हैं। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवताओं का एक (दिन-रात) मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है।
चंूकि बसंत पंचमी का पर्व इतने शुभ समय में पड़ता है अत: इस पर्व का स्वत: ही आध्यात्मिक, धार्मिक, वैदिक आदि सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस दिन सरस्वती पूजन और व्रत रखने से वाणी मधुर होती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है। पति-पत्नी और बधुजनों का कभी वियोग नहीं होता और दीघायु एवम् निरोग प्राप्त होता है।
वाग्देवी सरस्वती को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला बनाया जाता है खास कर मीठा चावल। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। बच्चें पतंग उढ़ा कर इस त्यौहार को चार चाँद लगाते हैं। इस मास को 'मधुमास' भी कहते हैं। क्योंकि समूचा वातावरण पुष्पों की सुंगध और भौरों की गूंज भर जाता है। प्रकृति काममय हो जाती है। कलिदास ने यश और ख्याति प्राप्त की देवी कृपा से बाल्मीकी, वसिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक और व्यास जी जैसे महान ऋषि देवी-साधना से ही कृतार्थ हुए थे। आओ हम सब इस महान दिन में कुछ ऐसा ही प्रण करे और इस राष्ट्र को भी उस शिखर पर पहुंचाये। मथुरा में अलग-अलग जगह मेला लगता है। भगवान को विशेष श्रृगार करते हैं। वृन्दावन के श्री बाके बिहारी जी मन्दिर में बसंती कक्ष खुलता है। शाह जी के मन्दिर में बंसती कमरा प्रसिद्ध है। पीले रंग का हिन्दुओं का शुभ रंग है।
- डा. शशी कान्ता

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