Tuesday, March 10, 2015

सदियों की सजा न बने मशरत की रिहाई-- राकेश सैन

                                 हमने तारीख के वे दौर भी देखे हैं,
                           जब लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई।
जो देश या समाज अपने इतिहास से नहीं सीखते वे एतिहासिक खमियाजा भुगतने को अभिशप्त होते हैं। मुफ्ती मोहम्मद सैयद के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर की सरकार ने आतंकवादी मशरत आलम को रिहा किया है। वह मशरत जिसने घाटी में पत्थरबाजी का अभियान चलाया, जिसमें 120 से अधिक लोग मरे और असंख्य घायल हुए। सेना ने उस पर दस लाख का ईनाम घोषित किया और बड़ी मुश्किल से काबू किया। उसके अपराधों की लंबी शृंखला को देखते हुए उसके खिलाफ भारत के खिलाफ युद्ध छेडऩे जैसा गंभीर मामला दर्ज किया गया। इसकी पूरी आशंका है कि सरकार की यह गलती लगभग वैसी ही है जब 1989 में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सैयद की ही बेटी डा. रूबीया सैयद की रिहाई के लिए जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के आतंकियों व 1999 में कंधार में अगवा किए गए इंडियन एयरलाइंस के मुसाफिरों की रिहाई के लिए खतरनाक आतंकियों को छोड़ा गया था। इतिहास साक्षी है कि ये गलतियां कितनी महंगी साबित हुईं देश व दुनिया को। आज फिर इतिहास अपने आप को दोहरा दिख रहा है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री श्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की इस तरह की हरकतों को न रोका गया तो भविष्य में इसका बहुत बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ेगा हमें।
डा. रूबिया अपहरण मामले में छोड़े गए आतंकी जेकेएलएफ के एरिया कमांडर शेख अब्दुल हमीद, गुलाम नबी भट्ट, नूर मोहम्मद कलवाल, मोहम्मद अलताफ व जावेद अहमद जर्गर तथा कंधार अपहरण कांड में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाईट 814 के यात्रियों के बदले रिहा किए गए मुश्ताक अहमद जर्गर, अहमद उमर सैयद शेख, मौलाना मसूद अजहर जैसे आतंकी केवल हमारे देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अत्यंत खतरनाक साबित हुए। इन्हीं आतंकियों ने बाद में न केवल डैनिश पत्रकार डैनियल पर्ल का सिर कलम किया बल्कि मुंबई में आतंकी हमले करवाए और पूरी दुनिया में आतंकवाद की आंधी ला दी।
यह दुखद आश्चर्य है कि आतंकी मशरत आलम की रिहाई मुफ्ती मोहम्मद सैयद की उस सरकार ने की है जिसमें आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता (जीरो टोलरेंस) की नीति का पालन करने वाली भारतीय जनता पार्टी की बराबर की सांझेदारी है। एक सप्ताह पहले ही अस्तित्व में आई पीडीपी-भाजपा सरकार के नेताओं ने चाहे दावा न्यूनतम सांझा कार्यक्रम के आधार पर चलने का किया है परंतु सरकार के कदमों से एक के बाद एक विवाद छिड़ रहे हैं। राज्य में चुनावी प्रक्रिया की सफलता का श्रेय सीमापार के लोगों व अलगाववादियों को देने वाले मुख्यमंत्री ने बाद में संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के अवशेष मांगने, उसे शहीद का दर्जा देने की बात करके और अब खुंखार आतंकी मशरत को रिहा कर देश को सन्न कर दिया है। देश की एकता-अखण्डता की शपथ लेकर कुर्सी पर विराजमान हुए किसी राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा अपनी संवैधानिक सौगंध के साथ-साथ जिम्मेवारी को इतनी जल्दी भुलाने का उदाहरण पहली बार देखने को मिला है। मुख्यमंत्री श्री सैयद ने कहा है कि राज्य सरकार राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की योजना बना रही है परंतु सवाल उठता है कि क्या मशरत जैसा आतंकी राजनीतिक बंदी है ? क्या उसका पत्थरबाजी का अभियान कोई राजनीतिक था ?
देश में इस घटना की तीखी प्रतिक्रिया होना स्वभाविक है और हो भी रही है। अगर विपक्षी दल को छोड़ भी दें तो भी देशवासियों ने भी इस घटना को बड़ी गंभीरता से लिया है। जिस तरह मुंबई का शेयर बाजार आर्थिक गतिविधियों का मापदंड माना जाता है उसी भांति आजकल सोशल मीडिया सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों के प्रति समाज की भावनाओं का दर्पण बन चुका है। इसी के माध्यम से देशवासियों ने इस घटना के प्रति अपनी आपत्ति जाहिर की है। भारतीय जनता पार्टी ने आतंकी मशरफ की रिहाई का विरोध करके ठीक कदम तो उठाया है परंतु उसके लिए केवल निंदा ही पर्याप्त नहीं है। जम्मू-कश्मीर सरकार में उसकी बराबर की भागेदारी है और वहां की सरकार को गलत करने से रोकना विपक्ष की बजाय भाजपा की अधिक जिम्मेवारी बनती है। चाहे आतंकी की रिहाई का मामला पीडीपी का राजनीतिक एजेंडा हो सकता है परंतु सरकार में सत्ता की भागेदारी होने पर भाजपा भी बदनाम के छींटों से बच नहीं पाएगी। इससे भी आगे जाते हुए देश पीडीपी से ज्यादा भाजपा से सवाल करेगा क्योंकि मुफ्ती मोहम्मद की सीमाएं व सोच एक राज्य या वर्ग तक सीमित हो सकती है परंतु भाजपा एक ऐसा राष्ट्रीय दल है जिसकी नींव राष्ट्रवाद पर आधारित है। राज्य के साथ-साथ केंद्र में सत्तारूढ़ होने के कारण उसकी जिम्मेवारी पूरे देश के प्रति बनती है। जम्मू-कश्मीर में पूर्ण बहुमत न होने के कारण पीडीपी का साथ देना भाजपा की राजनीतिक जरूरत हो सकती है परंतु इस आवश्यकता में मजबूरी नहीं झलकनी चाहिए। भाजपा को ‘समर्थन’ और ‘समर्पण’ में अंतर करना होगा और मुख्यमंत्री श्री मुफ्ती मोहम्मद सैयद को बताना होगा कि न्यूनतम सांझा कार्यक्रम में तो इस तरह की बातें शामिल नहीं हैं। कुछ लोग तर्क देते हैं कि पीडीपी जैसी पार्टी के साथ होने पर भाजपा पर लगा कथित अल्पसंख्यक विरोध का लेबल उतर सकता है और अल्पसंख्यक उसकी ओर आकर्षित हो सकते हैं तो ये लोग शुरुआत ही गलती से कर रहे हैं। इस तरह की सोच रखने वाले यह मान कर चल रहे हैं कि देश का अल्पसंख्यक समाज आतंकियों का हमदर्द है। याद रहे कि इस तुष्टिकरण की नीति को जन्म देने और उसका पालन-पोषण करने का अपराध कांग्रेस ने किया था जो इसी कारण से आज देश भर में राजनीतिक हाशिए पर पहुंच चुकी है। अगर श्री सैयद अपनी हरकतों से बाज नहीं आते तो भाजपा को अन्य विकल्प तलाशने चाहिएं और बड़े से बड़े राजनीतिक बलिदान के लिए अपने को तैयार करना चाहिए। भाजपा अगर इन परिस्थितियों में साहसिक कदम उठाती है तो देश में उसकी साख भी बढ़ेगी जनता में विश्वास भी और आतंकवादियों को भी इसका सख्त संदेश जाएगा।

                                                                                                                                                                                              राकेश सैन
                                                              भगत सिंह चौक, नई रेलवे रोड
                                                                                 जालंधर।

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