Tuesday, March 24, 2015

वो आइना खुद को भी कभी दिखाओ -- चन्द्रमोहन जी


जिस वक्त देश में यह जबरदस्त बहस चल रही थी कि निर्भया बलात्कार पर आधारित बीबीसी वृत्तचित्र 'इंडियाज़ डॉटर' दिखाई जाए या न दिखाई जाए, लुधियाना के एक होटल में काम करने वाली लड़की जो देर रात काम के बाद घर लौट रही थी, के साथ गैंगरेप हो गया। अपने साथ रेप के बाद उस लड़की ने जो कहा वह उल्लेखनीय है, 'मैंने चूड़ीदार कुर्ता डाला हुआ था। मेरा कोई ब्वाय फ्रैंड नहीं है। मेरा कसूर क्या था? कुछ लोग कहते हैं कि जीन्स डालने से रेप हो जाता है। कुछ महिला के चरित्र को जिम्मेवार ठहराते हैं। मैं किसे दोषी ठहराऊं?' अपराधी मुकेश सिंह, हिन्दू महासभा तथा कई और समाज के ठेकेदार भी मानते हैं कि महिला का आधुनिक पश्चिमी लिबास रेप को आमंत्रित करता है लेकिन लुधियाना की यह मासूम तो चूड़ीदार कुर्ता में थी फिर उससे बलात्कार क्यों हुआ? हमने नगालैंड के दीमापुर में अलग घटना देखी जहां रेप की घटना से आक्रोषित भीड़ ने केन्द्रीय जेल पर धावा बोल कर आरोपी को बाहर निकाल पीट-पीट कर मार डाला। नगालैंड में बलात्कार की दर सबसे कम है पर इस तरह भीड़ की हरकत अलग कहानी बताती है कि लोग धीमे कानून से तंग आकर कानून खुद हाथ में लेने लगे हैं लेकिन अगर ऐसा सब करने लग पड़े तो अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी। फिर तो माओवादी भी कहेंगे कि उनकी हिंसा भी जायज़ है।
दुनिया भर में बलात्कार होते हैं लेकिन आजकल हमारी बदनामी अधिक है जिस कारण एक भारतीय पुरुष को जर्मनी में इंटरनशिप से इसलिए इन्कार कर दिया गया क्योंकि भारत में 'रेप समस्या' है। बाद में जरूर इस जर्मन महिला प्रोफैसर ने माफी मांग ली लेकिन क्या बलात्कार केवल भारतीय समाज तक ही सीमित है, जर्मनी में बलात्कार नहीं होते? ग्लासगो में चलती बस में बाकी यात्रियों के सामने लड़की से बलात्कार किया गया। लंदन में 9 स्कूली लड़कों ने एक लड़की से सामूहिक बलात्कार किया। कुछ लड़के तो 13 वर्ष के थे। दिल्ली में जिस तरह निर्भया के साथ बलात्कार के बाद उसे यातनाएं दी गईं उसी तरह दक्षिण अफ्रीका में सामूहिक बलात्कार के बाद एक महिला को सड़क पर फेंक दिया। उसकी आंतडिय़ां बाहर निकली हुई थीं। पश्चिम में तो चर्च के अंदर रेप की शिकायतें मिल रही हैं।
निर्भया रेप पर वृत्तचित्र बनाने वाली निर्माता लेसली उडविन का कहना है कि इस पर प्रतिबंध लगा कर भारत ने 'अंतरराष्ट्रीय आत्महत्या' कर ली है पर इस महिला ने यह नहीं बताया कि इसे जारी करते हुए उसने कानून और नियमों का उल्लंघन क्यों किया? ऐसी तथा स्लमडॉग मिलेनियर जैसी फिल्में भारत की बुरी तस्वीर पेश करती हैं जो हकीकत से मेल नहीं खातीं। स्लमडॉग मिलेनियर में चुन चुन कर ऐसे दृश्य डाले गए थे जो केवल इस समाज की गंदी तस्वीर पेश करें। बराक ओबामा ने भी धार्मिक असहिष्णुता पर हमें लताड़ दिया जबकि अमेरिका से रोज़ाना नसली हिंसा तथा नफरत के समाचार मिल रहे हैं। जहां तक बलात्कार का सवाल है संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों में सबसे कम बलात्कार होते हैं भारत उनमें शामिल है। क्योंकि यहां जनसंख्या अधिक है और अंतरराष्ट्रीय दुष्प्रचार मिल रहा है इसलिए बदनामी अधिक हो रही है कि जैसे हर भारतीय मर्द भेडिय़ा है।
जिन देशों में बलात्कार सबसे अधिक होता है उनमें अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, बैल्जियम जैसे विकसित देश शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्रीय की रिपोर्ट के अनुसार यहां प्रति 1,00,000 जनसंख्या बलात्कार की दर 1.8 है जबकि आस्ट्रेलिया में यह 28.6, ब्रिटेन में 24.1, अमेरिका में 28.6, स्वीडन में 66.5, बैल्जियम में 26.3 तथा दक्षिण अफ्रीका में 114.9 है। फिर भारत बलात्कारी देश कैसे हो गया? ब्रिटेन में बलात्कार की दर हमसे 13 गुणा अधिक है। बीबीसी ने अपने घर में इतनी शोचनीय हालत के बारे वृत्तचित्र क्यों नहीं बनाया? बीबीसी तथा सीएनएन जैसे चैनल हैं जो पश्चिमी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हुए दूसरों को नीचा दिखाते रहते हैं। हमारे बारे पूर्वाग्रह पक्के किए जाते हैं। वह तो हमें एक गरीब, पिछड़ा, अनपढ़, अभद्र देश ही देखना चाहते हैं पर हमें अपने पुराने मालिकों से नसीहत नहीं चाहिए। हमें भी इन्हें शीशा दिखाना चाहिए कि दुष्कर्मी तथा विकृत लोग उनके समाज में भी हैं। सर जेम्स सैविल जिसका जिक्र मीनाक्षी लेखी ने भी एक लेख में किया है, बीबीसी में एक शो होस्ट करता था। उसकी मौत के बाद उसके खिलाफ यौन उत्पीडऩ की कई सौ शिकायतें बाहर आई हैं जिससे पुलिस का मानना है कि यह शख्स धारावाहिक यौन अपराधी था। बीबीसी ने अपने शो होस्ट के बारे अपनी खोजी पत्रकारिता के हुनर का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? अब कहा जाता है कि वह अपने स्टाफ तथा परिचित, जिनकी उम्र 5 वर्ष से 75 वर्ष तक थी, पर यौन हमले करता रहा। इनमें लड़के और लड़कियां बराबर थे लेकिन अभी तक इसका 'सर' का खिताब वापिस नहीं लिया गया। बीबीसी से पूछना है कि अगर उसे बलात्कार की इतनी चिंता है तो वह 'सर' जेम्स सैविल पर 'इंडियाज़ डॉटर' की तरह 'ब्रिटेनज़ फादर' वृत्तचित्र क्यों नहीं बनाती? वहां दक्षिणी यार्कशायर में 1997-2013 के बीच 1400 बच्चों का यौन उत्पीडऩ हुआ था। वहां के पूर्व सांसद डैनिस मैक शेन ने स्वीकार किया है कि वह इस बात के अपराधी हैं कि इसे रोकने के लिए उन्होंने बहुत कम प्रयास किया।
अर्थात् कोई भी समाज नहीं है जो ऐसे भेडिय़ों से अछूता हो केवल हमारा दुष्प्रचार अधिक होता है जिसमें हमारे अंग्रेजी मीडिया का भी एक वर्ग शामिल है जिनके लिए पश्चिम की राय किसी धर्म ग्रंथ के आदेश से कम नहीं। हां, यहां कमजोरियां हैं। समाज का एक वर्ग आधुनिक, आजाद तथा आत्मनिर्भर महिला की अवधारणा को पचा नहीं पा रहा है। और अगर मुकेश सिंह का मामला लम्बित न होता तो वह यह बताने की स्थिति में न होता कि किस तरह उसने उस लड़की की हत्या की थी। 2013 में बलात्कार के मामलों में केवल 27 प्रतिशत को सजा मिली थी लेकिन सजा की दर कई पश्चिमी देशों में इससे भी कम है। अमेरिका में 100 में से केवल 3 को कैद की सजा मिलती है। हमारी सजा की दर ब्रिटेन से अधिक है लेकिन निश्चित तौर पर बहुत सुधार की गुंजाइश है क्योंकि यहां तो पीडि़त महिला थाने में जाने से घबराती है। एनडीटीवी ने लखनऊ की एक महिला से बात की है जिसके साथ बलात्कार तब हुआ था जब वह मात्र 13 वर्ष की थी। अब वह 23 वर्ष की है पर मुकदमा शुरू नहीं हुआ क्योंकि अपराधी की राजनीतिक पहुंच है। अगर इसी तरह बलात्कार के मामले लटकाए जाते रहे तो दीमापुर जैसी और घटनाएं हम रोक नहीं सकेंगे। बीबीसी की चिंता किए बिना हमें अपना सुधार करना है पर हमें बदनाम करने वाले पश्चिमी प्रचार तंत्रों को ज़रूर कहना चाहूंगा,
हर रोज़ मेरे रूबरू करते हो जिसे आप,
वो आइना खुद को भी कभी दिखाओ!

--चन्द्रमोहन जी
(लेखक दैनिक वीर प्रताप, समाचार पत्र के संपादक है)

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