Monday, March 9, 2015

भू-अधिग्रहण बिल पर राजनीति या भारत के विरुद्ध षड्यंत्र - रामगोपाल

भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर शुरू हुए तथाकथित किसान आन्दोलन के समानांतर ही आएं स्वयंभू मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनैशनल की, भारत की नई सरकार को निशाना बनाने वाली रिपोर्ट ने यह प्रमाणित कर दिया है कि आम आदमी के नाम पर देश में शुरू हुई राजनीति की जड़ें विदेशी संगठनों से जुड़ी हुई हैं। एमनेस्टी की रिपोर्ट जो कह रही है वही बातें भाषणभाषी दो महीने पूर्व शब्दश: आम आदमी पार्टी के नेता बोल रहे थे। वही भाषा रातों-रात उठ खड़े हुए तथाकथित किसान आंदोलन के मंच से अन्ना हजारे, मेधा पाटेकर और दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल की रही है।
एमनेस्टी की रिपोर्ट पर हाय-तौबा का माहौल बनाना विदेशी कमान वाले भारतीय न्यू•ा टी.वी. चैनलों की मजबूरी या जिम्मेवारी तो हो सकती है लेकिन इस देश के प्रत्येक नागरिक की भी जिम्मेवारी है कि वह तथ्यों की पड़ताल के लिए जड़ तक जाये। भारत की नई केन्द्र सरकार को नरेन्द्र मोदी सरकार कहकर सम्बोधित करना ही इस तथ्य का प्रमाण है कि एमनेस्टी को चिंता भारत के नागरिकों की अपेक्षा देश में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने की अधिक है। यह चिंता भी उस समय प्रकट एवं प्रचारित की जा रही है जब मोदी नीत भारत सरकार ने देश हितकारी नई नीतियों के बल पर मात्र नौ महीने में ही महंगाई कम करके इस देश के आम आदमी को शक्ति एवं स्वाभिमान से जीने का अवसर प्रदान किया है और विश्व में भारत का मान बढ़ाया है। अनुशासन के प्रतीक कहे जाते यूरोप-अमेरिका की मिट्टी से जन्मी एमनेस्टी इंटरनेशनल को देश की राजधानी में नागरिकों को अतिक्रमण की छूट देने की अराजकता तो इस देश के लिए खतरनाक दिखाई नहीं देती लेकिन छिटपुट साम्प्रदायिक मतभेद की मामूली घटनाएं उसे धार्मिक हिंसा दिखाई दे रही हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बुधवार को नरेन्द्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि मोदी नीत लोकतांत्रिक सरकार के आने से भारत में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ी है और भूमि अधिग्रहण अध्यादेश से हजारों भारतीयों के जबरन बेदखली का खतरा पैदा हो गया है। रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि अधिकारी लगातार लोगों की निजता और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ी और भ्रष्टाचार, जाति आधारित भेदभाव व जातिगत हिंसा फैली है। सांप्रदायिक हिंसा का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है कि चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में भड़की सांप्रदायिक घटनाओं से हिंदू और मुसलिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ा। इसके लिए केन्द्रीय नेतृत्व जिम्मेदार है। 
उपरोक्त रिपोर्ट में से मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल (लंदन) का नाम निकाल दिया जाए तो आपको याद आ जायेगा कि पिछले दो महीने से भारत विरोधी इन बातों का भारत में ही प्रचार प्रसार का काम कौन-कौन लोग कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता यह है की वर्तमान की केन्द्रीय सरकार के क्रियाकलापों से सारे विश्व में भारत की एक सशक्त राष्ट्र की छवि बननी प्रारम्भ हुई है तथा देश में भी महंगाई पर नियंत्रण के साथ-साथ अनेक प्रशासनिक सुधार भी धीरे-धीरे किये जा रहे हैं। जिसे विश्व में दादागिरि करने वाली शक्तियां पचा नहीं पा रही हैं। इसके लिए उपरोक्त रिपोर्ट ही उनकी मनोव्यथा को प्रकट कर रही है। 
इसलिए दिल्ली चुनाव तथा वर्तमान समय में दिल्ली में चल रहे अन्ना आंदोलन में सारे देश से लोभ-लालच देकर गैर किसानों को इकट्ठा करके उनके सामने यह भाषण दिया जा रहा है कि आज देश में स्थिति अंग्रेजों के जमाने से भी बदतर हो गयी है। उपरोक्त रिपोर्ट इस स्थिति के लिए हवाले के रूप में प्रस्तुत की जा रहा है। इसकी सभी बातों को जोर-जोर से बोला जा रहा है। इनके चेहरे तथा बातों से दिखने वाली नफरत किसके प्रति है। ध्यान रहे सबसे पहले आगरा की एक सामान्य घटना तथा दिल्ली में चुनावों के दौरान चर्च पर प्रायोजित हमले तथा भूमि अधिनियम बिल के संसद में चर्चा के लिए आने से पूर्व ही सारे देश में इसके लिए योजना बनाकर तथा जब संसद चल रही हो तब पूरी दिल्ली को किसान आंदोलन के नाम पर बंधक बनाने का काम करने वाले लोग किसके एजेंडे की पूर्ति कर किसको खुश करने के लिए झूठा प्रचार कर रहे हैं।
ऐसा नहीं कि यह पहली बार हो रहा है। इससे पूर्व की सरकार में उड़ीसा तथा गुजरात के दंगों को आधार बनाकर सरकार को कटघरे में खड़े कर सारे देश में साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा करने का प्रयास किया गया था। आज भी वहीं मेधा पाटेकर से ले करके तीसता शीतलवाड़ समेत सभी वामपंथी जोकि कभी कांग्रेस के पीछे छुपकर वार करते थे आज वह छाती ठोक कर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए हैं। आज बड़े-बड़े वामपंथी लेखक कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की गुहार लगा रहे हैं इसके पीछे का षड्यंत्र सामने लाया ही जाना चाहिए। ऐसे में एक जागरुक नागरिक होने के नाते हमें देश में घट रही इन सभी घटनाओं पर नजर रखते हुए राष्ट्रहित पुनर्जीवित विश्लेषण करना चाहिए।
भारत को लेकर एमनेस्टी के चरित्र की बात करें तो कुछ वर्ष तक इसकी चिंता भारत के राज्य जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवादियों के हाथों मारे जाने वाले निर्दोष हिन्दू-सिख-मुसलमानों की अपेक्षा पुलिस मुठभेड़ों में मरने वाले आतंकियों के मानवाधिकारों को लेकर अधिक थी। जम्मू-कश्मीर राज्य में हाल ही में आये नये जनादेश की समीक्षा न जाने एमनेस्टी के सरकरदाओं ने करनी जरूरी क्यों नहीं समझी और भूमि अधिग्रहण बिल के लोकसभा में पेश होने मात्र और पर देश के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्वारा संसद में चर्चा से पूर्व ही इसने इसे भारत के तमाम नागरिकों के लिए मोदी सरकार का देश निकाले का आदेश तय कर दिया।
एमनेस्टी को अमेरिका में भारतीय सिखों को ओसामा बिन लादेन कहना और उन पर अत्याचार होने से तो मानवाधिकारों का उल्लंघन दिखाई नहीं देता लेकिन भारत में बांधों, मार्गों, उद्योगों का बनना विकास की अपेक्षा चिंता का विषय दिखाई पड़ रहा है। यह तमाम तथ्य भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए चिंतन का विषय है। यह चिंतन उस समय और भी अनिवार्य है जब देश पटरी पर आ रहा है और दुनिया में इसके गौरव और इसकी शक्ति को स्वीकृति मिल रही है।

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