Monday, March 9, 2015

वेलन्टाईन-डे और हमारे बच्चे!--डा. शशी कान्ता



इन दिनों हर टी.वी. चैनल की खबरों में हिसार में उस मन्दबुद्धि नेपाली लड़की के साथ बलात्कार और दरिन्दगी के साथ मौत की खबर एक शर्मिदंगी और दुख का कारण बनी हुई है। उसके शरीर के अंगों में पत्थरों का मिलना, राक्षसी रूप का जीता-जागता उदाहरण है। माँ दुर्गां के इस देश में जहां कंजक पूजन किया जाता है, जहाँ कृष्ण खुद बहन द्रोपदी की लाज बचाने आते हैं, जहाँ शिवा जी स्त्रियोंं के साथ अच्छा व्यवहार न करने के कारण अपने सेनापति को देश निकाला दे देते है वहीं सीता जैसी पवित्र माँ की पुत्रियों क्यों हैवानों का शिकार हो रही हैं।
बहुत सारे कारणों में से एक कारण भारतीय समाज में पश्चिम के प्रति बढ़ता आकर्षण है। अंग्रेजी पढ़े लिखे हमारे नौजवान धीरे-धीरे काले अंग्रेज बनते जा रहे हैं। पूरी तरह अंग्रेजी  ना जानते हुए भी अंग्रेजी  बोलकर अपना रोब जमाने का स्वभाव, अंग्रेजो  का नया साल मनाना, अंग्रेजी  तिथि के अनुसार जन्मदिन मनाना (दीपक जलाने की बजाए, दीपक बुझाना) तथा  अंग्रेजी  त्यौहारों को मनाने में मार्डन महसूस करना आज हमारा स्वभाव बन गया है जिसे हर माता पिता खुली आंखों से देख रहा है परन्तु उन्हें रोकने या समझाने की बजाये शांत है। दुर्भाग्यवश हमारा मीडिया और बाजार अपने स्वार्थ के कारण इन त्यौहारों का अंधाधुंध प्रचार प्रसार करते हैं। जिसका असर नौजवान युवक युवतियों पर पड़ता है। 
उदाहरण के लिए एक महीना पहले वेलन्टाईन-डे का प्रचार प्रसार शुरू हो जाता है। सारे बाजार पोस्टरों, गिफ्ट आईटमों से भर जाते हैं। वेलन्टाइन-डे जैसे दिवसों ने ही हमारे देश में हमारी बहनों, बेटियों को एक वस्तु बना दिया। इस दिन लड़के लड़कियां, गुलाब, कार्ड, चाकलेट एक दूसरे को देते हैं और इसे मनाने के लिए होटल के कमरे, रेस्टोरेन्ट, पार्क समुद्र के किनारे बुक करवाते हैं तथा रात-रात तक अपने साथियों के साथ अभद्र नाच करते हैं, शराब का सेवन भी होता है। ऐसी परिस्थिति में किसी का भी व्यवहार सम्मानजनक नहीं हो सकता है और परिणामस्वरूप अभद्र व्यवहार यानि बलात्कार और मौत तक की स्थिति के हम अनेकों उदाहरण अखबारों में अगले दिन पढ़ते हैं। समाज की कुछ नौजवान युवतियों के कारण पूरी स्त्री समाज को शर्मिदा होना पड़ता है। यह पश्चिमी देशों द्वारा हमारी भव्य संस्कृति को खत्म करने तथा अपना व्यापार बढ़ाने का एक तरीका है। वेलनटाइन डे, चाकलेट डे, परपोज डे यह ऐसे दिवस है जो हमारी संस्कृति पर सीधा आघात कर रहे हैं।
मैं अपने नौजवान भाईयों-बहनों को बताना चाहती हूँ कि वें 14 फरवरी का दिन जरूर मनाएं क्योंकि आज जिस आजादी को हम भोग रहे हैं उस आजादी को प्राप्त करने के लिए भारत के तीन नौजवानों ( शहीद भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु) को आज के ही दिन फांसी की सजा सुनाई गई थी। अगर वें फांसी न चढ़ते तो अपना देश भी स्वतन्त्रत नहीं होता। 
आईए! इस दिन हम सब उन्हें हम अपना श्रद्धासुमन अर्पित करें जिन्होंने अपनी जवानी एक जवान की तरह, भारत माँ के चरणों में अर्पित की है। धन्य हे वो माँ जिसने उन्हें जन्म दिया। यही स्त्री जाति की विशेषता है। सीता, सावित्री के इस देश में रहने वाली बेटियों से अनुरोध है वह वस्तु बनकर न जिये। स्वाभिमान का जीवन जिये, रानी लक्ष्मीबाई तथा माता जीजाबाई जैसा जीवन जियें तांकि वे सदियों सदियों तक स्त्री जाति को प्रेरणा देती रहे। 

डा. शशी कान्ता
पठानकोट

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