Tuesday, March 24, 2015

मां और बेटे के बीच कांग्रेस -- चन्द्रमोहन जी

सोनिया गांधी के नेतृत्व में 14 पार्टियों के 100 सांसदों ने संसद भवन से लेकर राष्ट्ररपति भवन तक एक किलोमीटर मार्च कर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ ज्ञापन सौंपा। पहली बार इस तरह 10 जनपथ की ऊंची दीवारों से बाहर आकर सोनिया गांधी ने सड़क पर प्रदर्शन किया है। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी तथा लाल कृष्ण आडवाणी सब ऐसा कर चुके हैं लेकिन सोनिया गांधी की ऐसी सक्रियता देश ने पहली बार देखी है। वह अदालत द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को समन दिए जाने के बाद भी कांग्रेस के नेताओं के साथ मनमोहन सिंह के घर तक मार्च कर चुकी हैं। इस बार उन्हें अधिक समर्थन मिला क्योंकि तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यू) तथा इनैलो जैसी कांग्रेस विरोधी पार्टियों के सांसद भी उनके पीछे चल रहे थे। सोनिया ने भी 'सभी प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा भविष्योन्मुखी ताकतों' की बात कर भाजपा तथा मोदी विरोध को सैद्धांतिक बनाने का प्रयास किया है। वह सीधे तौर पर नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर निशाना साध रही हैं और बताना चाहती हैं कि वही नरेन्द्र मोदी का सामना कर सकती हैं तथा पार्टी का नियंत्रण उन्होंने फिर संभाल लिया है। इस मामले में केन्द्रीय सरकार तथा भाजपा की असफलता है। भूमि अधिग्रहण के मामले में न वह देश को साथ लेकर चलने में सफल रहे हैं, न ही वह विपक्ष को बांट सके हैं। सोनिया खुद को किसानों का शुभचिंतक बताने के लिए उन प्रदेशों का दौरा भी कर रही हैं जहां वर्षा के कारण फसल तबाह हुई है। यूपीए बनाने के समय भी उन्होंने यह योग्यता दिखाई थी जब वह पहली बार खुद चल कर रामबिलास पासवान के घर गई थीं और उन्हें शामिल किया था। सोनिया समझती हैं कि भाजपा बैकफुट पर है और 'आपÓ उलझी हुई है लेकिन जैसे कहा गया है कि राजनीति में एक सप्ताह बहुत लम्बा समय है। शुक्रवार को ही कोयला तथा खनिज बिल पारित कर सरकार ने पासा पलट दिया। सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल सब सरकार के साथ खड़े थे। इन प्रदेशों को अब राजस्व का अधिक हिस्सा मिलेगा इसलिए वह कांग्रेस का साथ छोड़ गए हैं। सोनिया गांधी का नेतृत्व का प्रयास बीच लटकता रह गया है। हां, भूमि अधिग्रहण बिल जरूर एक बारूदी सुरंग की तरह है। सरकार का चेहरा झुलस सकता है।
पर सोनिया गांधी की सबसे बड़ी असफलता उनके अपने घर में है। मामला उनके पुत्र राहुल से जुड़ा हुआ है जो अपनी सारी जिम्मेवारी को एक तरफ फेंक कर पांच सप्ताह से गायब हैं। शायद मानना है कि राजनीति सचमुच 'ज़हर' है। मुझे तो ऐसा भी प्रभाव मिलता है कि जैसे उन्हें राजनीति में दिलचस्पी नहीं और मां जबरदस्ती उन्हें उधर धकेल रही हैं। यह भी आभास मिलता है कि राजनीति उन्हें जो विशेषाधिकार देती है उसको तो वह संभालना चाहते हैं लेकिन मेहनत कर उसकी कीमत नहीं चुकाना चाहते। राजनीति में वह उस तरह सुखद नज़र नहीं आते जैसे उनकी माता नज़र आती हैं। जो काम उनके पुत्र को करना चाहिए था सोनिया खुद कर रही हैं। वह यह संदेश भी दे रही हैं कि पुत्र की राजनीतिक कायरता के बावजूद कांग्रेस के शिखर पर 'नो वकेंसी' है, जगह खाली नहीं। पार्टी के महत्वाकांक्षी नेता शांत हो जाएं। लगता है कि सोनिया गांधी को भी पुत्र में अधिक विश्वास नहीं इसलिए उसे पूरी जिम्मेवारी सौंपी नहीं जा रही। दिलचस्प है कि कांग्रेस पार्टी में भी कोई राहुल की अनुपस्थिति महसूस नहीं कर रहा।
वैसे तो कांग्रेस राबर्ट वाड्रा का भी बचाव कर चुकी है जो जरूरी नहीं था क्योंकि कांग्रेस खुद मानती है कि उनके कारनामे 'व्यक्तिगत' हैं पर अब कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी की कथित जासूसी को लेकर अपना लतीफा बना लिया है। अगर सरकार ने जासूसी करनी है तो राहुल के घर परफार्मा लेकर एएसआई को भेजने की जरूरत नहीं आजकल तो जासूसी करने के बड़े आधुनिक तरीके हैं। हमने बीजिंग में परवेज मुशर्रफ तथा रावलपिंडी में बैठे उनके जनरल के बीच टेलीफोन वार्ता टेप कर ली थी। यूपीए के समय इस बात को लेकर खलबली मच गई थी कि वित्तमंत्री के दफ्तर में 'बग' अर्थात् खुफिया यंत्र लगा है। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह नियमित तौर पर अपने मेहमानों को बातचीत के लिए भवन से बाहर बाग में ले जाते थे क्योंकि उन्हें आशंका थी कि उनके वार्तालाप सुने जाते हैं। और जिस प्रकार की जानकारी राहुल के बारे प्राप्त करने की कोशिश की गई वह तो 'खुफिया' कही ही नहीं जा सकती। उनकी आंखों का रंग, कद काठ, जूतों का साइज क्या है यह सामान्य जानकारी है। सरकार ने बताया कि 1957 से दिल्ली पुलिस ऐसी प्रक्रिया अपना रही है जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, प्रणब मुखर्जी, सोनिया गांधी समेत 526 महत्वपूर्ण लोगों के बारे जानकारी इकट्ठी की गई लेकिन क्योंकि राहुल के घर एएसआई पहुंचा इसलिए कांग्रेस भड़क गई और बात का बतंगड़ बना दिया। यह कैसी पार्टी है जिसे हर सही-गलत, महत्वपूर्ण-महत्वहीन मामले में एक परिवार का बचाव करना पड़ता है? कांग्रेस की यह बेचारगी है जो उसके पतन का कारण बनी है। उनकी त्रासदी यह भी है कि जिसे वह दुल्हा बनाना चाहते हैं वह ही घोड़ी पर चढऩे को तैयार नहीं।
----चन्द्रमोहन जी

(लेखक दैनिक वीर प्रताप, समाचार पत्र के संपादक है)

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