Wednesday, March 11, 2015

संविधान में देश की पहचान 'इंडिया दैट इज़ भारत' फिर भी शर्म हमको मगर नहीं आती--कृष्ण लाल ढल्ल


जब से गणतंत्र दिवस पर केन्द्र सरकार द्वारा संविधान की मूल प्रस्तावना प्रकाशित हुई तब से कुछ राजनीतिक दलों ने एक विवाद खड़ा कर दिया, जो अभी भी जारी है। ये विवाद इस बात को लेकर शुरू किया गया कि इस प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष और समाजवादी शब्द गायब थे। इस मुद्दे को सरकार के ध्यान में लाने पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी, लेकिन इस बात को मोदी सरकार के कथित हिंदुत्व वाद रुझान से जोड़कर राजनीतिक माहौल में गर्मी पैदा कर दी गई और यह आभास दिया जा रहा है कि बवाल मचाने वाले नेता ही अल्पसंख्यकों और गरीबों के मसीहा हैं। 
खेदजनक बात ये है कि सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा इस स्पष्टीकरण के बावजूद मूल प्रस्तावना में ये दोनों शब्द नहीं थे और 1976 में आपातकाल के दौरान उस समय की प्रधानमंत्री इंदरा गांधी द्वारा 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान मे दर्ज किए गए थे, जिन्हें हटाने की दरकार की कोई मंशा नहीं है, यह दल विवाद जारी रखे हुए हैं। 
यहां यह बात ध्यान योग्य है कि यदि संविधान मे दर्ज होने के बावजूद धर्म निरपेक्ष और समाजवादी' शब्दों की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगा है तो इसके लिए दोषी वही दल नेता हैं, जिन्होंने अपने तुच्छ राजनीतिक हितों को साधने के लिए विशिष्ट पंथक समूहों और जातीय वर्गों का वोट बैंक बनाने के लिए दोनों शब्दों का दुरुपयोग किया और विभिन्न वर्गों में ईर्ष्या, दूरी और आरक्षण आदि कि होड़ पैदा कर दी। इतना ही नहीं इन दलों की केन्द्र राज्यों में बनी सरकारों ने भी हास्यप्रद प्रवृत्ति और आर्थिक विषमता को कम करने के कई गम्भीर कारगार प्रयास नहीं किए। अगर ये दल छदम ही सही धर्म निरपेक्ष समाजवादी स्थिति लाने के प्रति ईमानदार हैं तो वोट बैंक की राजनीति को सर्वथा त्यागें और समानता के लिए नबराबरी पिछड़ेपन का आधार सभी नागरिकों के लिए आर्थिकता को बनाएं। 
उपरोक्त बवाल के चलते सहसा संविधान में दर्ज उस शब्द समूह की और जाता है जो हमारी राष्ट्रीय अस्मिता, देश भावना, राष्ट्र की प्राचीनतम तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए शहीदों अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा दायी शब्द मातृ भूमि के लिए चुनौती हैं। मगर उस शब्द को संविधान में खारिज करने का विचार तक कभी उपरोक्त बवाल मचाने वाले दलों को नहीं आया, शर्म तो क्या महसूस करनी है। यह शब्द है संविधान की प्रस्तावना के तुरंत बाद भाग 1 के पहले प्रावधान में दर्ज 'इंडिया दैट इज़ (अर्थात) भारत ।
स्पष्ट है कि संविधान में अपने देश का मूल नाम इंडिया दर्शाया गया है, जिसे भारत भी कहा जा सकता है। नहीं कह सकते कि किन कारणों से संविधान निर्माताओं ने देश के लिए 'इंडिया' शब्द का प्रयोग करना जरूरी समझा, लेकिन अत्यंत खेद शर्म की बात है कि हम इसे अभी भी जारी रखे हुए हैं। अपेक्षा यह है कि धर्म निरपेक्ष समाजवादी शब्दों को लेकर बवाल मचाने वाले दल नेता ही नहीं बल्कि अन्य सभी दलों और केन्द्र सरकार संविधान में संशोधन कर 'इंडिया' शब्द को उसी तरह खारिज करे जिस तरह अंग्रेजों को बाहर निकाला था और भारत शब्द की गौरवमयी संप्रभु-सत्ता को बहाल करें। मैं तो यह भी अपेक्षा करता हूं कि जब भी कभी केन्द्र राज्य सरकारों द्वारा सूचित किए जाने वाले दस्तावेजों में देश का नाम दर्ज करना हो वहां भारत ही दर्ज किया जाए। यह दिखने में छोटा मगर दूरगामी प्रभाव का बड़ा कदम सिद्ध हो सकता है। 
                                                                                                                   

                                                                         कृष्ण लाल ढल्ल
                                                                           वरिष्ठ पत्रकार 

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