Tuesday, March 10, 2015

निर्भया डाक्यूमेंट्री भारत पर षड़यंत्र--विनायक सूद

किसी ने सच ही कहा है की लड़के अगर कुल को आगे बढ़ाते हैं तो लड़कियां उस कुल की पहचान बनाती हैं। शायद हम यह भूल गए हैं जिसके परिणामस्वरूप नारियों पर अत्याचार बढ़ता जा रहा है। आज पुरे विश्व में नारी सशक्तिकरण की आवाज़ उठ रही है। भारत भी इस समस्या से वंचित नहीं है। आये दिन हम स्त्रियों पर होते प्रहारों के बारे में सुनते हैं। स्त्रियों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषेय बन चूका है।
पिछले दिनों ब्रिटेन के क्चक्चष्ट ने नारी सशक्तीकरण का सन्देश पहुंचाने के लिए २०१२ के निर्भया बलात्कार मामले पर एक दस्तावेज़ी चित्रपटानुकूल यानी की डाक्यूमेंट्री फ़िल्म प्रदर्शित की। इस डाक्यूमेंट्री फ़िल्म पर भिन्न भिन्न तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। पीड़ित महिला के माता पिता ने आपत्ति बयां की है जबकि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा इसके विपरीत प्रचार किया जा रहा है। यह डाक्यूमेंट्री फ़िल्म कई क़ानून तोड़ते हुए बनायीं गयी है। भारतीय संसद में भी इस डाक्यूमेंट्री फ़िल्म प्रति गहरी निंदा प्रकट की गई और केंद्रीय सरकार ने इसके प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बावजूद क्चक्चष्ट ने इसका प्रसारण किया और अब ङ्घशह्वह्लह्वड्ढद्ग पर भी उपलब्ध है। इस परिस्थिति में स्वाभाविक था की विश्व भर में लोग इस डाक्यूमेंट्री फ़िल्म को देखेंगे। बहुत सारे लोगों ने इस घिनोनी हरकत की निंदा की और बहुत सारे लोगों के मस्तिष्क में भारत की तस्वीर बदल गयी है। इस में कोई शक नहीं है की बलात्कार एक दंडनीय अपराध है और इसका किसी मायने में बचाव नहीं किया जा सकता परंतु जो सवाल यहाँ उजागर होता है की क्या वाकये में क्चक्चष्ट का मकसद जागरूकता फैलाना था की भारत की छवि मिट्टी पलीत करना? आंकड़ों के अनुसार अमरीका और ब्रिटेन में बलात्कार की संख्या भारत से कहीं ज़्यादा है। ऐसे में अगर क्चक्चष्ट को अगर सिर्फ बलात्कार के प्रति जागरूकता ही फैलानी थी तो ब्रिटेन की ही कोई घटना का चित्रण क्यों नहीं किया गया? यह डाक्यूमेंट्री २०१३ में बनायी गयी थी तो अब २ वर्षों के बाद क्यों प्रसारित की जा रही है? नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट का कहना है की आरोपी मनोज कुमार को ₹४०,००० दिए गए। भारत में बलात्कार पीड़ित की पहचान उनके सग्गे-सम्बधियों की सहमति के बिना सार्वजनिक करना एक अपराध है जो की क्चक्चष्ट ने किया है। पीड़ित महिला की सहेली का कहना है की इस डाक्यूमेंट्री में तथ्यों से छेड़-छाड़ की गयी है। इस डाक्यूमेंट्री की सहनिर्माता अंजलि भूषण ने भी निर्माता लेस्ली उद्विन पर कानून की उलंघ्ना का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया है की कैसे लेस्ली उद्विन और क्चक्चष्ट ने जानबूझकर नियमों का पालन नहीं किया। कुल १३ लोगों का साक्षत्कार लिया गया परंतु केवल मनोज कुमार, जो की निर्भया मामले में मुख्य आरोपी है, उसका ही साक्षत्कार दिखाया गया है। अंजलि भूषण ने यह भी बताया है की तिहार जेल के प्रशासन और ग्रह मंत्रालय ने यह शर्ट रखी थी की इस डाक्यूमेंट्री का प्रसारण उनकी रज़ामंदी के बिना नहीं किया जाएगी जिसका पालन लेस्ली उद्विन ने नहीं किया। जिस दिन संसद में इस विवाद पर बवाल चल रहा था उसी दिन लेस्ली उद्विन भारत से ब्रिटैन के लिए रवाना हो गयीं। 
ऐसे में लेस्ली उद्विन और क्चक्चष्ट के मंसूबों पर स्वाल उठना स्वाभाविक है। आश्चर्य की बात यह है की क्चक्चष्ट ने हालही में अपने प्रसिद्ध प्रस्तुतकर्ता जिमी सेविल द्वारा नाबालिगों पर यौनउत्पीड़न पर तेहकीकात संबधी रिपोर्ट पर प्रतिबन्ध लगाया है। इस लिए अब लेस्ली उद्विन और क्चक्चष्ट को अपना रुख साफ़ करने की आवश्यकता है। विदेशों में आज भी कई लोग भारत को सांप-सपेरों का देश मानते हैं और दुर्भाग्य की बात यह है की अब वेसे ही कई लोग भारत को एक "बलात्कारी देश" बुलाने लगे हैं। कल की ही बात है की जर्मनी के एक विश्विद्यालय ने एक भारतीय छात्र को प्रशिक्षण के लिए यह कह कर मना कर दिया कि वह एक बलात्कारी देश का निवासी है। हालांकि भारत में जर्मनी के राजदूत ने उस विश्वविद्यालय की कड़ी निंदा की है मगर फिर भी यह एक चिंता का विषेय है।

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