Monday, March 9, 2015

होली का सन्देश-सामाजिक समरसता---मोनिका गुप्ता


भारत भूमि तीज- त्योहारों की भूमि है। यहाँ हर दिन एक नया उत्सव है। उन्हीं में से होली भारतीय संस्कृति का एक मुख्य एवं प्रसिद्ध त्योहार है। इसका जितना धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व है उतना ही सांस्कृतिक महत्त्व भी है। होली रंगों का त्योहार है जिसे हर वर्ग,जाति,वर्ण-सम्प्रदाय के बच्चे-बड़े, नर-नारी सभी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। होली शब्द सुनते ही रंग-बिरंगा वातावरण आँखों के समक्ष उपस्थित हो जाता है। रंग,उमंग,हास-परिहास और उल्लास का त्योहार होली एक पवित्र त्योहार है। सब लोग इस त्योहार को मिलजुल कर बिना किसी भेद-भाव के एक साथ मनाते हैं इसीलिए यह सामाजिक समरसता,समानता,एकता एवं मित्रता का सन्देश देने वाला पर्व है। होली का त्योहार सारे भारतवर्ष में भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है किन्तु इसके प्रति उत्साह सब में एक जैसा होता है। होली के त्योहार के प्रति उत्साह और उमंग तो बसंत ऋतु के आगमन से ही आरम्भ हो जाती है। बसंत ऋतु आने से प्रकृति में एक नवीन परिवर्तन दिखाई देने लगता है। वृक्षों पर नव पल्लव आ जाते हैं। प्रकृति फूलों का श्रृंगार कर नव परीणीता जैसी सज जाती है। फूलों पर भंवरे गुन्जार करने लगते हैं। यह सब मिलकर अद्भुत् दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इसी सौन्दर्यमय वातावरण प्राणियों में भी नव ऊर्जा का संचार होता है। यही उत्साह एवं उमंग होली पर्व पर भी दिखाई देती है।
हर त्योहार मनाने के पीछे कोई न कोई मान्यता जुड़ी रहती है। इसी प्रकार होली मनाने के पीछे भी  कुछ मान्यताएँ हैं। होली मनाये जाने के सन्दर्भ में जो पौराणिक मान्यता मुख्यत: प्रचलित है वो है दैत्यराज हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र भक्त प्रह्लाद की। दैत्यराज बहुत ही अहंकारी और ईश्वर के प्रति द्वेष रखने वाला था। उसने अपने राज्य में ईश्वर की भक्ति पर पूर्ण रोक लगा रखी थी। आज्ञा का उल्लंघन करने वाले पर तरह तरह से अत्याचार करता था। सारी प्रजा उससे त्रस्त रहती थी किन्तु उसका अपना ही पुत्र प्रह्लाद ईश्वर में पूर्ण आस्था एवं निष्ठा रखने वाला था। वह परम भक्त था। वह दूसरों को भी प्रभु भक्ति के लिए उत्साहित करता था जब हिरण्यकश्प के रोकने पर भी वह नहीं रुका तो उसने प्रह्लाद को भी कई प्रकार की यात्नायें दी किन्तु वह अपने मार्ग पर अटल रहा। तब दैत्यराज ने उसे मारने के लिए अपनी बहन होलिका, जिसको वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती को यह कार्य सौंपा। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाती है किन्तु जीत तो धर्म की ही होनी निश्चित थी। ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद तो जीवित बच जाता है और होलिका उस प्रचंड अग्नि में जल जाती है। मान्यता है कि यह त्योहार तभी से मनाया जाने लगा। यह त्योहार हमें यही शिक्षा देता है कि सदा अधर्म पर धर्म की विजय होती है। ईश भक्ति की राह ही सत्य है। जो ईश्वर में विश्वास रख कर अपने मार्ग पर अटल रहते हैं उनकी रक्षा स्वयं ईश्वर करते हैं। वैदिक काल में इसे नव-सस्येष्टि यज्ञ भी कहा जाता था।  चैत्र मास में नयी फसलें पकने को तैयार होती हैं। भारतीय मान्यता के अनुसार नए अन्न का उपयोग करने से पहले अग्नि भेंट किया जाता है। नए अनाज की बालियों को होली की अग्नि में भूनकर भगवान के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इन भुनी बालिओं को होला कहा जाता है। कुछ लोगों का विचार है कि इसी कारण इस पर्व का नाम होली पड़ा। होली दो दिन का त्योहार है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन एक खुले मैदान के बीचों बीच लकड़ी एवं उपलों का प्रयोग कर होलिका दहन की तैयारी की जाती है। दिन के समय सभी वर्गों, वर्णों एवं जातियों के लोग इक_े एक ही जगह मिल जुल कर होली पूजन करते हैं। यह दृश्य सामाजिक समरसता का श्रेष्ठ उदहारण प्रस्तुत करता है। फिर रात्रि में निश्चित मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन की प्रसन्नता एक दूसरे को रंग लगा कर, नाच गा कर व्यक्त करते हैं। होलिका दहन हमारे भीतर के अहंकार एवं बुराइयों को अग्नि में विसर्जित कर देने का ही प्रतीक है। आंतरिक बुराई, ईष्र्या ,द्वेष समाप्त होने से मन में प्रेम का भाव जागृत होता है। इसी से समानता, समरसता, प्रेम एवं सौहार्द बढ़ता है और एकता का भाव आता है। चैत्र प्रतिपदा को धुलन्डी भी कहा जाता है। इस दिन भी लोग एक दूसरे को रंग लगा कर अपनी ख़ुशी व्यक्त करते हैं। सारे भारतवर्ष में विभिन्न प्रान्तों में भिन्न भिन्न तरीके से मनाया जाता है यह पर्व। ब्रज की होली का तो रंग ही निराला होता है। यह भगवान श्री कृष्ण एवं राधा के पवित्र प्रेम का स्मरण करवाता है। यहाँ यह उत्सव कई दिन तक चलता है और हर दिन अलग तरह से होली खेली जाती है। पंजाब में होला मोहल्ला जिसमें कि शक्ति प्रदर्शन किया जाता है, हरियाणा में धुलन्डी ,महाराष्ट्र मंक रंग पंचमी में सूखा गुलाल ,बंगाल में ढोल यात्रा चैतन्य महाप्रभु की जयंती के रूप में मनाई जाती है। तमिलनाडु और असम में भी अनोखी ही परम्परा है। बिहार में फगुआ नाम मनायी जाती है उत्तर प्रदेश की होली भी दर्शनीय होती है। आध्यात्मिक ,धार्मिक होने के साथ ही यह सामाजिक एवं सांस्कृतिक त्योहार भी है। यह प्रेम, भाईचारे एवं राष्ट्रीय एकता का सन्देशवाहक भी है। इसे सभी लोग मिल जुल कर मनाते हैं। कोई बड़ा छोटा नहीं होता। इस दिन लोग अपनी पुरानी से पुरानी शत्रुता भुला कर हर्षोल्लास से सबसे मिल जुल कर पर्व मनाते हैं। यह पर्व वर्ण एवं जाति से ऊपर उठ कर मानवता का सन्देश देता है। सभी लोग एक ही रंग में रंग जाते हैं वो है मानवता का रंग। यदि देखा जाये तो होली के विभिन्न रंग ही अपने आप में समरसता का सन्देश देते हैं। प्रत्येक रंग का अस्तित्व अलग है। प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है किन्तु जब यह सब रंग एक साथ मिल जाते हैं तो अलग ही छटा बिखेरते हैं। वह दृश्य अद्भुत एवं मनोहर होता है। संक्षेप में यदि कहा जाये तो होली का त्योहार प्रेम ,भाईचारे एवं एकता का सन्देश देता है। कुछ स्वार्थी लोग अपनी स्वार्थ पूर्ती के लिए रंगों में कैमिकल और मिठाइयों में भी मिलावट करने लगे हैं। जिसके कारण लोगों में इस त्योहार के प्रति उत्साह कुछ कम हो रहा है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वह इस प्रकार के कार्यों से समाज को बाँटने का कार्य करने के स्थान पर व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाने की दिशा में प्रयास करें। जब हम सब मिल कर प्रसन्नता पूर्वक इस त्यौहार को मनाएंगे तभी होली खेलने में सम्मिलित अलग अलग रंगों का सन्देश सार्थक हो पाएगा जो की विविधता में एकता का सन्देश देते हैं। एक साथ मिलकर यह उत्सव मनाने से ही सामाजिक समरसता, समानता एवं सौजन्यता बढ़ाने एवं राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ करने का उद्देश्य पूर्ण हो पायेगा।
मोनिका गुप्ता ,
मोगा 

No comments:

Post a Comment